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शनिवार, दिसम्बर 6, 2025

विशाल भारद्वाज और गुलज़ार: संगीत और शब्दों का अटूट बंधन

फिल्म इंडस्ट्री में कुछ ऐसी जोड़ियां होती हैं, जिनका साथ आना ही अपने आप में एक मिसाल बन जाता है। संगीतकार, निर्देशक और पटकथा लेखक विशाल भारद्वाज और महान गीतकार गुलज़ार साहब की जोड़ी भी ऐसी ही है। विशाल भारद्वाज गुलज़ार साहब को न सिर्फ एक गुरु और मार्गदर्शक मानते हैं, बल्कि यह भी स्वीकार करते हैं कि गुलज़ार साहब ने उनके फिल्मी सफर को एक नया आयाम दिया है।

विशाल भारद्वाज कई मौकों पर यह बात दोहरा चुके हैं कि गुलज़ार साहब का उन पर कितना गहरा प्रभाव रहा है। गुलज़ार के शब्द, उनकी भाषा की सरलता और गहरे अर्थों को पिरोने की उनकी कला विशाल के संगीत को हमेशा से प्रेरित करती रही है। विशाल के करियर के शुरुआती दौर से ही गुलज़ार ने उन पर भरोसा दिखाया और दोनों ने मिलकर कई यादगार गाने दिए, जो आज भी संगीत प्रेमियों के दिल में बसे हुए हैं। यह गुलज़ार साहब ही थे जिन्होंने विशाल को न सिर्फ अपने ‘बूढ़े पहाड़ों के एल्बम’ के लिए गीत लिखने का मौका दिया, बल्कि उनकी फिल्मों के लिए भी सबसे ज़्यादा गीत लिखे हैं, जिस पर विशाल को हमेशा गर्व रहा है।

गुलज़ार साहब ने अपने गीतों में हमेशा रोजमर्रा की बातों और किरदारों को एक अनोखी ज़ुबान दी है। फिल्म ‘इश्किया’ का गाना ‘इब्ने बतूता’ इसी का एक बेहतरीन उदाहरण है। विशाल भारद्वाज के संगीत में यह गाना सुनते ही एक शरारती सी धुन और आवाज़ का अहसास होता है। गुलज़ार ने मध्ययुगीन यात्री ‘इब्ने बतूता’ के नाम का इस्तेमाल करते हुए एक ऐसे किरदार की कल्पना की, जो अपनी धुन में मस्त है।

ये पंक्तियाँ बेहद सरल और चुलबुली हैं, जो तुरंत दर्शकों और श्रोताओं से जुड़ जाती हैं। यह गाना जिंदगी की भागा-दौड़ी और छोटे-मोटे जोखिमों पर एक हल्की-फुल्की टिप्पणी भी करता है। विशाल भारद्वाज ने अपनी धुन से इस मज़ेदार कल्पना को पर्दे पर जीवंत कर दिया। यह गाना बताता है कि गुलज़ार कितने सहज तरीके से बच्चों जैसी कल्पना को भी एक परिपक्व और मनोरंजक रूप दे सकते हैं, जिसे विशाल का संगीत चार चांद लगाता है।

वहीं, फिल्म ‘माचिस’ का गाना ‘छप्पा छप्पा चरखा चले’ गुलज़ार और विशाल की जोड़ी का एक और अद्भुत काम है, लेकिन इसका मिज़ाज ‘इब्ने बतूता’ से बिल्कुल अलग है। यह गाना पंजाब के उस दौर के दर्द और युवाओं की उलझन को दर्शाता है जब राज्य में आतंकवाद का साया था।

गुलज़ार ने यहाँ ‘चरखे’ के रूपक का इस्तेमाल किया है। चरखा जो पारंपरिक रूप से उम्मीद, मेहनत और घरेलू जीवन की शांति का प्रतीक माना जाता है, उसे यहाँ दुख और अनिश्चितता के माहौल में चलने की बात की गई है।

विशाल भारद्वाज का संगीत इस गाने को एक उदास और शांत धुन देता है, जो दिल को छू जाती है। उन्होंने लोक संगीत के तत्वों को खूबसूरती से इस्तेमाल किया, जिससे गीत की भावना और भी गहरी हो जाती है। यह गीत दिखाता है कि कैसे गुलज़ार गंभीर विषयों को भी कोमल और काव्यात्मक शब्दों में ढाल सकते हैं, और विशाल उस काव्य को एक भावपूर्ण संगीत दे सकते हैं।

विशाल भारद्वाज और गुलज़ार का रिश्ता सिर्फ एक संगीतकार और गीतकार का नहीं है; यह दो कला प्रेमियों का संगम है। गुलज़ार ने विशाल के संगीत के लिए एक आधार दिया, जहाँ विशाल ने अपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन किया। ‘इब्ने बतूता’ की शरारत हो या ‘छप्पा छप्पा’ का गहरा एहसास, हर गाने में गुलज़ार की कलम की सादगी और विशाल के संगीत की गहराई एक दूसरे को पूरा करती है। यह जोड़ी हिंदी सिनेमा के लिए एक अनमोल तोहफा है।

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