सोनाक्षी सिन्हा और ज़हीर इक़बाल की शादी ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियाँ बटोरीं, लेकिन अफ़सोस, एक बार फिर कुछ लोगों की नज़र सिर्फ़ प्यार पर नहीं, बल्कि धर्म पर टिक गई। शादी की ख़बरों के आते ही, कई सोशल मीडिया यूज़र्स और कुछ मीडिया सर्कल्स ने इसे ‘इंटरफेथ’ या ‘अंतरधार्मिक’ विवाह का नाम देना शुरू कर दिया। ये वो पॉइंट था जहाँ सोनाक्षी ने चुप रहने की बजाय, बहुत ही सधे हुए और मज़बूत तरीक़े से इस पूरे नैरेटिव को ही ख़ारिज कर दिया।
सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि सोनाक्षी और ज़हीर ने कोई पारंपरिक धार्मिक रीति-रिवाज वाली शादी नहीं की। उनकी शादी ‘स्पेशल मैरिज एक्ट’ के तहत रजिस्टर हुई थी। इस क़ानून के तहत होने वाली शादियों में, दूल्हा और दुल्हन किसी भी धर्म के हों, यह मायने नहीं रखता। यहाँ सबसे ज़्यादा ज़रूरी है दो बालिग़ लोगों की आपसी सहमति और क़ानूनी काग़ज़ात।
सोनाक्षी ने साफ़ तौर पर कहा कि उनकी शादी का मुख्य आधार प्यार और आपसी सम्मान है, न कि धर्मों के बीच का टकराव या मिलन। उनका यह सीधा स्टैंड, उन सभी लोगों के लिए एक करारा जवाब था जो उनकी ख़ुशी को छोड़कर, सिर्फ़ यह देखने में लगे थे कि ‘एक हिंदू की शादी एक मुस्लिम से कैसे हो गई।’
सोनाक्षी सिन्हा ने अपनी निजी ज़िंदगी को पब्लिक की धर्म वाली बहस का अखाड़ा बनने से रोकने के लिए बहुत समझदारी से काम लिया। उन्होंने किसी लंबे-चौड़े बयान की बजाय, अपने एक्शन और कुछ स्पष्ट बातों से चीज़ें साफ़ कर दीं: उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह उनकी निजी ज़िंदगी का फ़ैसला है। दो लोगों ने एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने का फ़ैसला किया है, और इसमें किसी तीसरे व्यक्ति या धर्म के ठेकेदार की राय की कोई जगह नहीं है।
सोनाक्षी ने बिना किसी लाग-लपेट के समझाया कि उनका रिश्ता प्यार और दोस्ती पर टिका है, न कि किसी मज़हबी लेन-देन पर। ‘इंटरफेथ’ का लेबल लगाकर लोग इसे धर्मों की लड़ाई बनाना चाहते थे, जबकि सोनाक्षी ने इसे सिर्फ़ ‘दो इंसानों का मिलन’ कहकर उस बहस को ही ख़त्म कर दिया।
अक्सर ‘इंटरफेथ’ शादियों में यह नैरेटिव गढ़ा जाता है कि किसी एक पार्टनर को अपने धर्म का ‘बलिदान’ देना पड़ता है। सोनाक्षी ने अपनी शादी को सिंपल रजिस्टर मैरिज रखकर यह साफ़ कर दिया कि उन्होंने या ज़हीर ने अपने धर्म या पहचान का कोई ‘बलिदान’ नहीं दिया है।
सोनाक्षी का यह स्टैंड सिर्फ़ उनकी निजी रक्षा नहीं था, बल्कि उन सभी जोड़ों की ओर से एक आवाज़ थी जिन्हें अपने प्यार के लिए धर्म की दीवारों को तोड़ना पड़ा है। उन्होंने समाज को आईना दिखाया कि आज भी बहुत से लोग दो लोगों की ख़ुशी से ज़्यादा उनके धर्म पर ध्यान देते हैं।
सोनाक्षी ने उन सभी ‘चाचा-चाची’ ब्रिगेड का मुँह बंद कर दिया जो बिना बुलाए मेहमान की तरह हर रिश्ते में धर्म का हिसाब लगाने पहुँच जाते हैं। उन्होंने साबित किया कि जब सेलिब्रिटीज़ भी अपनी निजी ज़िंदगी पर इस तरह के घटिया कमेंट्स को बर्दाश्त नहीं करते, तो आम लोगों को भी चुप नहीं रहना चाहिए।
सोनाक्षी और ज़हीर ने अपनी शादी से यह सन्देश दिया है कि प्यार सिर्फ़ प्यार होता है, और उसे किसी भी धार्मिक ब्रैकेट में फ़िट करने की ज़रूरत नहीं है। लोगों को अब आगे बढ़ना चाहिए और सिर्फ़ नफ़रत फैलाने वाली बातों पर ध्यान देने की बजाय, इस नए जोड़े को ख़ुशहाल जीवन की शुभकामनाएँ देनी चाहिए।
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