27 C
Mumbai
रविवार, दिसम्बर 7, 2025

आधुनिक समाज में भारतीय महिलाएँ: सीमा पाहवा और मनोज पाहवा का नज़रिया

कलाकार सीमा पाहवा और मनोज पाहवा भारतीय समाज, खासकर आधुनिक महिलाओं की चुनौतियों पर खुलकर बात करते रहे हैं। उनके विचार अक्सर सदियों पुरानी पारंपरिक भूमिकाओं और आज़ादी की चाह रखने वाली महिलाओं के बीच के संघर्ष को दर्शाते हैं।

सीमा पाहवा का मानना है कि घर के काम करना महिलाओं के ‘स्वभाव’ में है। वह कहती हैं कि औरतें जन्म से ही माँ होती हैं और उनका सॉफ्ट नेचर उन्हें घर की ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के लिए प्रेरित करता है। उनका कहना है कि जब काम का बँटवारा हुआ कि पुरुष बाहर का काम करेंगे और महिलाएँ घर का, तो इसके पीछे महिला का यह स्वाभाविक गुण ही कारण रहा होगा।

सीमा जी अपनी निजी ज़िंदगी का उदाहरण देती हैं कि शादी के बाद उन्होंने बच्चों को सँभालने और खाना बनाने जैसे घरेलू काम खुशी से किए। वह इसे कर्तव्य मानती हैं, न कि कोई बंधन। वह सवाल करती हैं कि जो वर्किंग महिलाएँ घर के काम को ‘छोटा’ समझती हैं या नापसंद करती हैं, क्या वे अपनी प्रकृति (नेचर) के विरुद्ध नहीं जा रहीं? उनके अनुसार, वह खुद भी करियर-ओरिएंटेड हैं और काम तथा घर के बीच संतुलन बना रही हैं।

मनोज पाहवा अपनी पत्नी के विचारों का समर्थन करते हुए इस संघर्ष को ‘जेनेटिक व्यवहार’ से जोड़ते हैं। वह पुराने ज़माने का उदाहरण देते हैं कि जब पुरुष शिकार करने जाते थे, तब महिलाएँ बच्चों और घर की देखभाल करती थीं। यह व्यवहार सदियों से हमारी जीन में समाया हुआ है।

मनोज पाहवा के अनुसार, आधुनिक समाज में महिलाएँ इसलिए फँस गईं, क्योंकि एक तरफ़ तो उनमें यह घरेलू ज़िम्मेदारियाँ सँभालने का ‘जेनेटिक व्यवहार’ मौजूद है, लेकिन दूसरी तरफ़ वे स्वतंत्र भी बनना चाहती हैं। इस वजह से, उन्हें घर और बाहर दोनों जगह काम करना पड़ रहा है, जिससे वे एक ‘दोहरे चक्र’ में फँस गई हैं। उनका मानना है कि इस तरह के जेनेटिक व्यवहार को बदलने में हज़ारों साल लगते हैं, इसलिए यह बदलाव रातों-रात नहीं आ सकता।

दोनों कलाकारों के विचारों का सार यह है कि आधुनिक भारतीय महिलाएँ आज एक बड़ी दुविधा में हैं। वे बाहर की दुनिया में सफलता हासिल करना चाहती हैं, पर साथ ही, घर और परिवार के प्रति अपनी पारंपरिक ज़िम्मेदारियों से भी पूरी तरह मुँह नहीं मोड़ पाती हैं। सीमा पाहवा और मनोज पाहवा, दोनों ही इस बात पर ज़ोर देते हैं कि घरेलू काम को छोटा नहीं समझना चाहिए और महिलाएँ अगर संतुलन बनाकर चलती हैं, तो वे अपनी प्रकृति के अनुकूल ही काम कर रही हैं।

यह विचार आधुनिक नारीवाद के कुछ सिद्धांतों से भले ही अलग हो, लेकिन यह भारतीय परिवारों की एक बड़ी सच्चाई को दर्शाता है, जहाँ महिलाएँ अक्सर काम और घर दोनों की दोहरी ज़िम्मेदारी को निभाते हुए संघर्ष कर रही हैं।

टीवी सीरियल और बॉलीवुड की लेटेस्ट गॉसिप और अपकमिंग एपिसोड के लिए बने रहिए tellybooster के साथ।

Latest news
Related news

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें